नामांतरण आवेदन फॉर्म डाउनलोड PDF
नामांतरण आवेदन फॉर्म डाउनलोड PDF: भूमि या संपत्ति सम्बन्धी राजस्व अभिलेखों जैसे खसरा, खतोनी, ऋण-पुस्तिका आदि में स्वामित्व सम्बंधित प्रविष्टी को एक नाम से दुसरे नाम पर स्थानांतरण या परिवर्तन करने को नामांतरण कहा जाता है। जब भी कोई किसान या व्यक्ति कोई भूमि खरीदता है या बेंचता है या किसी प्रोपर्टी या संपत्ति का स्वामी या मालिक की म्रत्यु हो जाती है तो उस भूमि या संपत्ति के अधिकारों को पंजीकृत किया जाता है जिसे राजस्व अभिलेखों में शाशकीय रूप में दर्ज किया जाना होता है। इसके लिए आवेदक को राजस्व न्यायलय में ऑफलाइन या ऑनलाइन सेवा जैसे लोकसेवा केंद्र, RCMS, MPOnline आदि के माध्यम से आवेदन करना होता है।
नामांतरण के प्रकार
1. फौती नामांतरण, सभी वारिसों के हक के आधार पर –
खातेदार की मृत्यु होने के उपरान्त उसके वैध वारिसों का नाम राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किया जाना।
2. फौती नामांतरण, कुछ वारिसों के हक त्याग के साथ-साथ –
खातेदार की मृत्यु होने के उपरान्त जिन वारिसों ने अपना हक़ त्याग कर दिया है उन्हें छोड़ कर शेष वेध वारिसों के नाम राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किया जाना।
3. फौती नामांतरण, वसीयत के आधार पर –
खातेदार द्वारा अपने जीवनकाल में वसीयतनामा करने पर उसकी मृत्यु के बाद उसके आधार पर नाम राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किया जाना।
4. पंजीकृत विक्रयपत्र के आधार पर –
पंजीकृत विक्रयपत्र के आधार पर क्रेता के नाम नामांतरण
5. पंजीकृत दानपत्र के आधार पर –
खातेदार द्वारा अपनी भूमि को अपनी स्वेच्छा से किसी अन्य को बिना प्रतिफल लिए हस्तांतरित करना।
6. पंजीकृत विनिमय पत्र के आधार पर –
पंजीकृत विनिमय पत्र के आधार पर भूमि की अदला-बदली।
7. व्यवहार न्यायालय के डिक्री के आधार पर –
व्यवहार न्यायालय द्वारा भूमि को खातेदार के स्थान पर अन्य व्यक्ति के नाम किये जाने का आदेश।
8. नाबालिक से बालिक होने पर –
खातेदार के वयस्क(बालिक) हो जाने पर रिकॉर्ड का अद्यतन।
9. किसी अन्य प्रकार से हक अर्जन द्वारा –
ऊपर वर्णित प्रकारों से भिन्न प्रकार से हक अर्जन होने पर।
उपरोक्त में से किसी भी प्रकार के नामांतरण के लिए निम्न आवेदन फॉर्मेट की जरुरत होती इसे नीचे दी गई लिंक से डाउनलोड किया जा सकता है-
डाउनलोड नामांतरण एप्लीकेशन फॉर्मेट PDF
नीचे दी गयी लिंक से डाउनलोड नामांतरण एप्लीकेशन फॉर्मेट PDF
नामांतरण आवेदन फॉर्म डाउनलोड PDF
नामांतरण के लिये आवश्यक दस्तावेज
नामांतरण के लिए आवश्यक दस्तावेज़ नामांतरण के आधार पर निर्भर करता है निम्नलिखित दस्तावेज़ों के आधार पर नामांतरण कराया जा सकता है:
- खसरा की प्रतिलिपि
- B1 की प्रतिलिपि
- भू-अधिकार एवं ऋण पुस्तिका
- आवेदक का एक पहचान पत्र (आधार, वोटर आईडी इत्यादि)
इसके अलावा निम्न में से वो दस्तावेज जिसके आधार पर नामांतरण किया जाना है –
- विक्रय रजिस्ट्री के आधार पर – विक्रय पत्र
- दान के आधार पर – दान पत्र
- फौती नामांतरण के लिए – मत्यृ प्रमाण पत्र
- डिक्री के आधार पर – डिक्री की प्रतिलिपि
- वसीयत के आधार पर – वसीयत की प्रतिलिपि
- अन्य
नामांतरण के लिए समय सीमा क्या है
नामांतरण के आधार पर नामांतरण की समय सीमा अलग-अलग होती है सामान्यतः अविवादित नामांतरण की समय सीमा 30-45 दिन होती है एवं विवादित नामान्तरण की समय सीमा 6 माह होती है।
फौती नामांतरण : फौती नामांतरणों के प्रकरणों में भू-राजस्व संहिता की धारा 110 के अंतर्गत अविवादित नामांतरण की स्थिति में 30 दिवस के अंदर नामांतरण आदेश किये जाने का प्रावधान है। नामांतरण प्रकरणों में यह कार्यवाई पटवारी / नगर सर्वेक्षक अथवा भूमि में हित अर्जित करने वाले व्यक्ति के रिपोर्ट के आधार पर की जाती है। इन प्रकरणों में नामांतरण संबंधित नोटिस तहसील कार्यालय के सूचना पटल पर तथा उससे संबंधित ग्राम या सेक्टर में विहित रीति से प्रकाशित करने का प्रावधान है। तहसीलदार हितबद्ध समस्त व्यक्तियों को तथा ऐसे अन्य व्यक्तियों तथा प्राधिकारियों को, जो कि विहित किये जाऐं, ऐसे प्ररूप में तथा विहित रीति म0प्र0 भू-राजस्व संहिता (राजस्व न्यायालयों की प्रक्रिया) नियम 2019 के भाग-2 समन, सूचना, उदघोषणा एवं वारंट कंडिका 15 से 36 में वर्णित रीति से है, में नोटिस जारी करेगा। यदि किसी प्रकार का विवाद / आपत्ति न्यायालय को प्राप्त नहीं होती है तो नियमानुसार निर्धारित अवधि में नामांतरण आदेश पारित किया जाना चाहिए। ऐसे प्रकरणों में सभी हितबद्ध पक्षकारों की सूचना उपरांत व्यक्तिश: उपस्थिति ना होने के कारण प्रकरण को लंबित ना कर आदेश पारित किया जा सकता है।
विक्रय रजिस्ट्री : प्राय: भूमि के विक्रय के आधार पर नामांतरण प्रकरणों में विक्रेता की व्यक्तिश: उपस्थिति ना होने के कारण भी प्रकरण लंबित होते हैं। अक्सर विक्रेता भूमि के विक्रय उपरांत क्रेता के नामांतरण में रूचि नहीं लेते। फलस्वरूप वे न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होते। इन प्रकरणों में यदि सार्वजनिक उदघोषणा के प्रकाशन एवं विक्रेता को सूचनापत्र जारी करने के उपरांत भी विक्रेता न्यायालय में उपस्थित नहीं होता और ना ही उसकी ओर से कोई आपत्ति न्यायालय के सामने आती है तो विक्रेता की मौन स्वीकृति मानते हुए उपलब्ध तथ्यों के आधार पर एवं गुण दोषों पर आदेश पारित किया जा सकता है।